बडे़ दुर्भाग्य की बात है कि इस महामारी के दौर में भी कई व्यवसायी आम लोगों की मजबूरी का फायदा उठाकरअधिक से अधिक मुनाफा कमाने में लगे हैं| इस पर मेरी एक त्वरित काव्यात्मक टिप्पणी-
इस इस मुश्किल वक़्त में वो मुनाफ़ा कमाए जा रहा है।
गुज़र गये लोग, गुज़ारा न होने से, और वो है कि दाम बढा़ए जा रहा है|
दुश्मन इस मुल्क और दुनिया का जो बेरहम हो गया है,
ग़रीबों पर रहम के बजाए उनके चिथडे़ उडा़ए जा रहा है|
हैवानियत की हद है इस दौर में वो मुब्तिला बराबर है,
वो भ्रम में है कि बहुत कुछ कमाए जा रहा है|
एक झटके में पलटती है दुनिया, सब देखते रह जाते हैं,
पर नहीं, वह अपनी आदतों से मात खाए जा रहा है|
ख़ुदा इस वक़्त अक्ल दे अंधेरे में वो गुमराह हो चुका है,
जो इंसानियत के वक़्त में अदावत दिखाए जा रहा है|
लोग मुँह छुपाए घूम रहे हैं फैला है क़हर चारों तरफ़,
और वो बेशरम मुँह खोले माल कमाए जा रहा है।
देखो क़यामत बरपी है इस ख़ूबसूरत कायनात में,
न डर रसूल का उसे, अपना ईमान गँवाए जा रहा है|
मौला देख रहा है कि किसके नसीब में हैं नेकियाँ,
और इंसान है कि खुद अपने जाल में फँसाए जा रहा है|
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©भूपेन्द्र हरदेनिया 'साद'
इस इस मुश्किल वक़्त में वो मुनाफ़ा कमाए जा रहा है।
गुज़र गये लोग, गुज़ारा न होने से, और वो है कि दाम बढा़ए जा रहा है|
दुश्मन इस मुल्क और दुनिया का जो बेरहम हो गया है,
ग़रीबों पर रहम के बजाए उनके चिथडे़ उडा़ए जा रहा है|
हैवानियत की हद है इस दौर में वो मुब्तिला बराबर है,
वो भ्रम में है कि बहुत कुछ कमाए जा रहा है|
एक झटके में पलटती है दुनिया, सब देखते रह जाते हैं,
पर नहीं, वह अपनी आदतों से मात खाए जा रहा है|
ख़ुदा इस वक़्त अक्ल दे अंधेरे में वो गुमराह हो चुका है,
जो इंसानियत के वक़्त में अदावत दिखाए जा रहा है|
लोग मुँह छुपाए घूम रहे हैं फैला है क़हर चारों तरफ़,
और वो बेशरम मुँह खोले माल कमाए जा रहा है।
देखो क़यामत बरपी है इस ख़ूबसूरत कायनात में,
न डर रसूल का उसे, अपना ईमान गँवाए जा रहा है|
मौला देख रहा है कि किसके नसीब में हैं नेकियाँ,
और इंसान है कि खुद अपने जाल में फँसाए जा रहा है|
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©भूपेन्द्र हरदेनिया 'साद'