सोमवार, 14 फ़रवरी 2022

जाति प्रथा का दंश

"इस देश के लोग पीढ़ियों से जाति देखते आ रहे हैं, व्यक्तित्व देखने की न उन्हें आदत है, न परवाह" आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी का यह कथन न केवल प्रासंगिक ही है, अपितु चरितार्थ होता तब नज़र आता जब आप अपने साथी को किसी आंचलिक क्षेत्र में किराए का घर/कमरा दिलाने ले जाते हैं, और वहां सबसे पहला प्रश्न यह किया जाता है कि आप किस जाति से हैं, और मूल जाति बताए जाने पर निश्चित ही निराशा का सामना करना पड़ता है। लेकिन हम जैसे लोगों के लिए आंचलिक क्षेत्रों की यह समस्या मन व्यथित कर देने वाली है। वाकई भारतीय अंचलों में लोगों को इस विषय पर जागरूक करने की आज महती आवश्यकता है। भारतीय परिवेश, यहां की संस्कृति, यहां के लोगों के लिए जाति-प्रथा एक बहुत बड़ा दंश है। अगर हम जात-पात से अभी नहीं उबरे तो हमारे देश में अलगाव और विघटन का संकट हमेशा व्याप्त रहेगा। मैं देखता हूं कि हमारे आंचलिक परिवेश में या तो गलत सिखाया जाता है और कहीं कुछ सही  सिखाया भी जाता है तो हम उसे गलत तरीके से प्रस्तुत करते हैं। पहले की चतुष्वर्णीय व्यवस्था कर्मों के आधार पर थी। हमारे यहां औपनिषदिक कथन है, गीता में भी कहा गया है कि 'चातुर्वर्ण्यं मया सृष्टं गुणकर्मविभागशः।' अर्थात् मेरे द्वारा गुणों और कर्मोंके विभागपूर्वक चारों वर्णोंकी रचना की गयी है। गीता में वर्णों को गुणों और कर्मों के आधार पर माना है, यदि वर्ण को प्रमुखता देनी होती तो तो श्लोककर्ता उसे 'चातुर्वर्ण्यं मया सृष्टं गर्भजन्मविभागशः' कहता। इसी प्रकार एक और जगह कहा गया है कि- जन्मना जायते शूद्र: संस्कारैर्दिज उज्यते। विद्यया याति विप्रत्वं त्रिभि: श्रोत्रिय उच्यते।। अर्थात जन्म से मनुष्य शूद्र के रूप में होता है संस्कारों से वह द्विज कहलाता है विद्या प्राप्त करने से वह विप्रत्व पाता है और उक्त तीनों से वह श्रोत्रीय कहा जाता है। कहने का तात्पर्य सिर्फ इतना ही है कि हमारे यहां  जाति की जो रूढ़ियां हैं उन्हें बदलने की आवश्यकता है। जाति का निर्धारण वर्ण नहीं अपितु कर्म है। यस्क मुनि की निरुक्त के अनुसार - ब्रह्म जानाति ब्राह्मण: -- ब्राह्मण वह है जो ब्रह्म (अंतिम सत्य, ईश्वर या परम ज्ञान) को जानता है। और परम ज्ञान यह है कि सर्व खल्विदं ब्रहमं अर्थात हर जगह ईश्वर विद्यमान है, ब्रह्मसूत्र में 'तत्वमसि' कहकर हर तत्व में ईश्वर की विद्यमानता मानी है।  अगर हम ईश्वर के तत्त्व को नहीं समझे तो ईश्वर को समझना भी हमारे लिए नामुमकिन है, चाहे हम कितने ही पूजा पाठी हों।

- डॉ. भूपेन्द्र हरदेनिया