यों तो साक्षात्कार किसी भी व्यक्ति से लिया जा सकता है, पर विशेष रूप से जब किसी ऐसे साहित्यकार से साक्षात्कारकर्ता प्रश्न करते हैं जो रचनाकार होने के साथ-साथ किसी विशेष आंदोलन का प्रणेता भी रहा हो तो वह साक्षात्कार और भी अधिक महत्वपूर्ण हो जाता है। इस दृष्टि से डॉ. भूपेन्द्र हरदेनिया द्वारा संपादित की गई यह पुस्तक ‘‘हिमालय सा देवत्व‘‘ जो गंगा प्रसाद विमल से लिये गए साक्षात्कारों पर आधारित है, विमल जी के साहित्यिक अवदान को भली भांति रेखांकित करती दिखती है।
इस पुस्तक में कुल नौ साक्षात्कार संकलित किए गए हैं जिनमें से अधिकतर साक्षात्कार युवतर साक्षात्कारकर्ताओं द्वारा लिए गए हैं और यही वजह है कि युवाओं के मन में उठने वाले तमाम सारे प्रश्न और जिज्ञासाएं इन साक्षात्कारों में सामने आती हैं जिनका विमल जी ने विस्तार से समाधान करते हुए उत्तर दिया है। साहित्य को लेकर उनकी एक स्पष्ट दृष्टि थी जिसकी चर्चा स्वयं उन्होंने अपनी पुस्तकों की भूमिका में भी की है।
किसी साहित्यकार से लिए गए साक्षात्कार के माध्यम से हम उसके व्यक्तित्व, कृतित्व शैली और जीवन के प्रति उसके दृष्टिकोण से भी भलीभांति परिचित होते हैं। यह भी आवश्यक है कि स्वयं साक्षात्कारकर्ता भी साक्षात्कार लेने से पहले न केवल उस व्यक्ति के साहित्य का, उसकी कृतियों का आलोड़न विलोड़न करे बल्कि उसकी भी कोई न कोई कोई साहित्यिक अभिरुचि अवश्य होनी चाहिए तभी वह अपने साक्षात्कार में ऐसे बिंदु उठा सकेगा जो रचनाकार की सोच और समझ की परतों को खोलने में सफल होंगे। इस दृष्टि से भी जिन साक्षात्कारों का चयन डॉक्टर भूपेन्द्र हरदेनिया ने किया है वे उल्लेखनीय हैं। .
विमल जी को पढ़ते हुए पाठक एक ऐसी दुनिया में पहुंचता है, एक ऐसे लोक में जहां कल्पना की उड़ान भी है, फैंटेसी भी, सच भी और एक रहस्य भी। यह रहस्य बिल्कुल पहाड़ों की दुनिया जैसा है। एक के पीछे एक, परत दर परत खुलती हुई खिड़कियां। उनके बचपन में भारत स्वतंत्र हुआ और विस्थापन को उन्होंने अपनी आंखों से देखा, उसकी त्रासदी को बहुत गहराई से महसूस किया और उसे अपनी रचनाओं का हिस्सा बनाया। विमल जी जिस पहाड़ में जन्मे थे वह उनसे कभी भी नहीं छूटा। उनके पात्र और खुद वे बिल्कुल किसी पहाड़ी झरने जैसे निर्मल और तरल थे । उनके साक्षात्कारों पर केन्द्रित यह पुस्तक उन्हें और उनके रचना कर्म को याद करने का सराहनीय प्रयास है और इसके लिए पुस्तक के संपादक डॉ. भूपेन्द्र हरदेनिया बधाई के पात्र हैं।
प्रो. आनंद वर्धन, भारतीय विद्या विभाग
सोफिया विश्वविद्यालय, बुल्गारिया
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