अच्छी भावनाएं
जो हम रखते हैं
अपनों के प्रति,
सर्वत्र होती भी हैं
अपने बीज रूप में,
अंकुरित होता है प्रेम उसमें
पल्लवित होती हैं
सद्भावनाएं
निश्चलता से,
लेकिन
कई बार लग जाते हैं
उसमें चालाकियों के कीड़े
डाल दिया जाता है
दुर्भावनाओं का कम्पोस्ट,
कुटिलता की
झुलसा देने वाली गर्मी
जला देती है
प्रेम के पौधे को
कपट की सड़ांध
बढ़ने नहीं देती उसे,
अच्छी भावनाओं का पौधा
लगने और सब सहने के बाद भी
फलित नहीं होता फिर
वह घुन लगा
काठ हो जाता है बस।
© भूपेन्द्र हरदेनिया
चित्र गूगल से साभार
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