शुक्रवार, 23 अक्टूबर 2020

वास्तविक शिक्षा

अगर हम अपने आस-पास के माहौल से हैं अनभिज्ञ
नहीं सोचते अपनी संस्कृति के बारे में।

वे छोटी-छोटी सी चीजें जो धीरे-धीरे
आ रहीं हैं अपने वृहद और विकराल रूप में
बन रहीं हैं मानव जीवन को खतरा
उनसे नहीं हैं हम वाकिफ
या करते रहते हैं नजरअंदाज उन्हें।

हमारे अंदर अगर प्रस्फुटित नहीं होतीं
मानवीय संवेदनाएं
कपट, कुटिलता, चालाकियों और छद्माभेष से
करते रहते हैं, अपने घर से लेकर बाहर तक सबको भग्न।

हम अगर नहीं करते फ़िक्र
अपने आस पड़ोस, गली मोहल्ले, शहर, देश
वहां की आवोहवा की
प्रकृति, पर्यावरण, नदियों, तालाबों और पहाड़ों की।

प्रदूषित होने देते हैं नदियों को।

टूटने देते हैं पहाड़ों को
बदलने देते हैं उन्हें खदानों और गहरे गड्ढों में,
कटने देते हैं हरे भरे पेड़ों को,
नष्ट होने देते हैं
जंगल और निरीह जीव जंतुओं को।

तालाब में छेद कर मरने छोड़ देते हैं उसे
मुर्गे को हलाल कर छोड़ देते हैं जिस तरह
ताकि की जा सके खेती,
बन सके वहां भी मकानात
घेरा जा सके उस जगह को भी कभी

ध्यान नहीं रखते स्वच्छता का
बस करते रहते हैं अधारणीय विकास

बहने देते हैं वगैर टोंटी वाले नलों से बेतहाशा पानी 
कई लीटर जल बर्बाद होने पर हमारी आत्मा 
यदि हमें नहीं कचोटती 
तो वाकई हम 
आदिमानव से भी गये बीते होते हैं।

हो सकते हैं हम धनवान
कई उपाधियां और सम्मान 
भले ही हों हमारे नाम
साक्षर ही होते हैं हम बस तब
वास्तविक शिक्षित नहीं।

© डॉ. भूपेन्द्र हरदेनिया

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