बुधवार, 13 अप्रैल 2022

ग़ज़ल

चारों तरफ पसरा मौत का साया है अब
खुद के लिए खुद ही जाल बिछाया है अब

एक तरफ ग़म ए रोजगार है, गरीबी है
दूसरी तरफ कोरोना  घर घर आया है अब

संगीनों के साए में है लोगों की जिंदगी
फिर भी रैलियों में रेलमपेल मचाया है अब

तबीबों में हैवानियत छा रही दिन ब दिन
बगैर पैसे इलाज कौन कर पाया है अब

मत देखो घबरा देने वाली खौफनाक खबरें
ये मंज़र दिल दहलाने वाला साया है अब

जोर जोर से चिल्लाते हैं समाचार वाचक
दरबारी याचकों पर जैसे प्रेत की छाया है अब

भाषणों की रोटियां और योजनाओं के महल
झूठ की परीक्षा में वो अव्वल आया है अब

कुछ भी हो मरती जनता ही है समझना पड़ेगा
सुख सुविधाओं पर सिर्फ ओहदे ने हक पाया है अब

क्या लेना-देना इनको मासूम आवाम से
नेताजी ठाट में हर जगह , फैली उनकी माया है अब

सत्तासीन में समा जाते गांधी के तीन बंदर
सत्ताहीन को जनता का दुख नज़र आया है अब

© डॉ. भूपेन्द्र हरदेनिया

तबीब-चिकित्सक

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