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शुक्रवार, 2 दिसंबर 2022
प्रेम की पराकाष्ठा
प्रेम अपने अलग-अलग रूपों में मनुष्य के जीवन में रूपायित होता है। लेकिन एक अलग किस्म का प्रेम जो पारंपरिक प्रेम से कुछ भिन्न होता है वह हमें अंदर तक हिला भी देता है ऐसा ही एक निस्वार्थ प्रेम जिसने मुझे हिला दिया उसके बारे में मैं आपको बताने जा रहा हूं। फेसबुक पर इस पोस्ट के साथ जो चित्र लगाए हैं उसमें एक चित्र मेरे साथ एक बुजुर्ग महिला का है जो मेरे लिए मेरी दादी से कहीं कम नहीं । किस्सा कुछ इस प्रकार है कि 2010 में जब मैं शासकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय ब्यावरा में अध्यापन कार्य हेतु गया, तब किराये के मकान की तलाश में जिनके घर मैं पहुंचा और बतौर किराएदार रहा यह वही दादी हैं याने कि हमारी मकान मालकिन। कहने को तो यह मेरी मकान मालकिन रहीं और जब तक रहा किराएदार के रूप में ही। पर इनका प्रेम परिवार के सदस्य से कहीं कम नहीं रहा। यह जब भी कुछ नया बनाती थीं मुझे और मेरी सहधर्मिणी को अवश्य खिलाती थीं। पाक कला में निपुण दादी कोई ना कोई हुनर मेरी धर्मपत्नी को भी सिखाती थीं। दादाजी भी उतना ही प्रेम बरसाते थे। 2012 में ब्यावरा छोड़ना हुआ और उसके बाद ब्यावरा कभी नहीं गया। दादी को जब भी याद आती अक्सर वही फोन लगाकर बात करती थीं। व्यस्तताओं के कारण मैं बहुत कम फोन कर पाता था। दादा जी के आकस्मिक देहावसान के बाद अक्टूबर 2022 में मेरा उनके वहां जाना हुआ बहुत सारी बातचीत हुई संवेदना और सहानुभूतियों का दौर भी चला और कुछ घंटों बैठने के बाद उन्होंने मुझे जो कुछ दिखाया और सुनाया, उसे देखकर और सुनकर मैं न केवल भावुक ही हुआ बल्कि हतप्रभ भी हो गया कि इतना भी प्रेम कोई किसी से कर सकता है। निस्वार्थ प्रेम। उनके शब्द थे "कि बेटा तुम्हारे जाने के बाद मुझे ऐसा लगा कि कोई किराएदार नहीं बल्कि घर का कोई व्यक्ति मुझसे दूर चला गया है इसीलिए मैंने उन चीजों को भी संभाल कर रखा है जिन्हें तुम छोड़ गए थे। वे ही पांच कप, एक बाल्टी और सीएफएल। यह तीनों मैंने संभाल कर रखे हैं और इन्हें देख कर मैं तुम्हारी याद कर लेती हूं, जब बहुत अधिक याद आती है तो फोन लगा लेती हूं। तुम जब भी मिलने आना किराएदार बनकर नहीं घर का बन कर आना।" दादी के इन वाक्यों को सुनकर और उन सामानों को देखकर मुझे प्रेम की पराकाष्ठा का प्रमाण मिल गया। जीवन के 10 वर्षों में न जाने कितने कप प्लेट फूट गए होंगे कितनी बाल्टियां टूट गई होंगी और कितने बल्ब और सीएफएल बदल गए होंगे। लेकिन 10 वर्षों में भी दादी के वहां वही सीएफएल जल रही थी वही बाल्टी और कप आज भी सुरक्षित हैं और शायद उनके होने तक तो रहेंगे। 10 वर्षों तक सीएफएल का जलना किसी कंपनी का हुनर नहीं बल्कि प्रेम की पराकाष्ठा ही है। दादी आपका प्रेम मेरे लिए किसी पुरस्कार से कम नहीं है। आप हमेशा स्वस्थ रहें और आपका प्रेम और आशीष यूं ही हमेशा बना रहे यही प्रभु से कामना है। 🙏❤️
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