रविवार, 12 अप्रैल 2020

स्मृतिशेष-गंगाप्रसाद विमल-काल तुझसे शिकायत

इस क्षति की भरपाई सम्भव नहीं| अकहानी आंदोलन के प्रणेता परम स्नेही, छात्र हितैषी, परम पूज्य, परम श्रद्धेय गुरुजी डाॅ. गंगा प्रसाद विमल जी का इस तरह अचानक चले जाना वज्रपात जैसा है| कोटि कोटि नमन, विनम्र श्रद्धांजलि गुरुदेव| शत् शत् नमन| आपकी हमेशा याद आयेगी|

 वे 80 वर्ष के थे. उनके परिजनों ने बताया कि वे अपने परिवार के साथ श्रीलंका घूमने गए थे. वहां उनकी वैन की टक्कर एक ट्रक से हो गई और तीनों लोगों की मृत्यु हो गई. दुर्घटना में उनका दामाद बुरी तरह घायल हो गये. उनके दामाद दिल्ली के पूर्व मुख्य सचिव उमेश सहगल के पुत्र हैं. तीनों के पार्थिव शरीर को भारत लाया जा रहा है.

श्री विमल केंद्रीय हिन्दी निदेशालय के निदेशक भी रह चुके थे. जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के अलावा वे ओस्मानिया विश्वविद्यालय के शिक्षक रह चुके थे. इसके साथ-साथ वे दिल्ली विश्वविद्यालय के ज़ाकिर हुसैन कॉलेज से भी जुड़े थे.

गंगा प्रसाद विमल का जन्म 3 जून 1939 को उत्तराखंड के उत्तराकाशी में हुआ था. उन्होंने 1965 में पंजाब विश्वविद्यालय से पीएचडी की थी. वे महत्वपूर्ण कवि, कहानीकार, उपन्यासकार और अनुवादक थे. उनका पहला काव्य संग्रह 1967 में विज्जप नाम से आया था. ‘अपने से अलग’ शीर्षक से उनका पहला उपन्यास 1972 में आया था.

वहीं अगर दूसरी रचनाओं की बात करें तो उनका पहला कहानी संग्रह ‘कोई भी शुरुआत’ 1967 में आया. उन्होंने चंद्रकुंवर बर्थवाल संचयन का संपादन किया और प्रेमचंद एवं मुक्तिबोध पर किताबें लिखीं. उनकी करीब 20 से अधिक पुस्तकें छपीं और उन्हें राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार मिले.

सहज-सरल व्यक्तित्व के मालिक स्मृति शेष विमल जी पिछले साल म.प्र. हिन्दी साहित्य सम्मेलन के हीरक जयंती समारोह के मुख्य अतिथि थे.उन्हें विनम्र श्रद्धांजलि

परम पूज्य गुरुदेव डाॅ. गंगा प्रसाद विमल जी के लिये मेरी एक कविता-

काल तुझसे 

शिकायत है मेरी

क्यों

तू 

छलता आया है,

इस सम्पूर्ण

मानव सृष्टि को

और मुझे,

मुझसे

मेरे अपने

मेरे सपने,

जिसे

हमेशा ही

अपने छलावे से,

तूने छीना है

मुझे,

मुझसे ही

मेरे अपने

और

मेरे सपने|

मेरा 

और उनका

समय 

आने से पहले

एक उत्तम गेंदबाज 

की फेंकी गई तुम्हारी 

 गेंद पर

हमेशा ही चकमा खाकर

हुये हैं खेल से बाहर

मैं 

मेरे अपने

और

मेरे सपने

तूने नहीं होने दिया

साकार

उन सपनों को

जो 

मैंने देखे थे

अपनों के लिये

उलट

घनी

धुंध का

डालकर

पर्दा

कर दिया 

उन्हें ओझल

और बिछड़ गया मैं

और वो मेरे अपने, 

मेरे सपने|

सूनी डायरी के

नीरस पृष्ठों सी 

मेरी जिंदगी

जिस पर 

लिखी जानी थी

कोई खुशी

कुछ प्रेम

कई फ़लसफ़े

कोई तरक्की

या

कुछ खट्टी मीठी यादें

या कुछ इबारतें

लेकिन 

तूने

नहीं बख्शा

जला दिया उन्हें

अपनी प्रचंड अग्नि से

कुछ इस तरह

कि खुलते जाते

जलते जाते

वे पन्ने एक-एक कर

बारी बारी से

एक-एक दिन की तरह

अलिखित

अदिखत|

नहीं चखने दिया

स्वाद 

इसका 

तुमने|

गला दिया

जैसे

पिघलते मोम

सी

टपकती

जिंदगी| 

तेरे

गाल में

समा चुके

मेरे अपने

मेरे सपने

तेरे छल

से छले गये

हमेशा वे

मेरे अपने

मेरे सपने

और 

खुद मैं|

तुम निष्ठुर 

इतने

क्रूर 

कैसे हो सकते हो

क्या तुम्हें

मालूम नहीं

मेरे अपनों का जाना

मेरे जाने जैसा ही है

वह मेरे अपने 

ही

थे

मेरे सपनों में शामिल

कुछ इस तरह कि

वह मेरे अपने नहीं

उनमें मैं ही था

और वो मुझमें

पर

वे नहीं गये कहीं

गया फिर से मैं ही

अब मैं फिर मर चुका हूँ

और हमेशा

मैं ही........

अधूरा जीवन 

लेकर

कई अधूरी ख्वाहिशों के साथ

इसकी शिकायत है

और हमेशा रहेगी

काल तुझसे शिकायत है मेरी


डाॅ. भूपेन्द्र हरदेनिया

बुतशिकनी

ये कैसा आलम है, हे प्रभु यह क्या हो रहा है|
जिंदा आदमी, भला क्यूँ एक बुत को रो रहा है|
उसी ने बुततराशी, और की बुतपरस्ती भी|
ये कैसा इन्सान है, लहू अपनों का पी रहा है|
खुदा भी रो रहा होगा, अपनी इस करनी पर,
कि जन्नत बनाई, और जिंदा इन्सान भी उसको
बुत बना दिया मुझे, और दस्तक हवा में दे रहा है|
फिजाओं में कहर, और जहर है ज़हन में आज
इन्सानियत भूला कि बस खुद को ढो रहा है|
दिया एक सा रंग लहू का और एक रूप सबको |
फिर भी वो है कि हिन्दू और मुसलमाँ हो रहा है|
चश्मगश्तः अलग-अलग बना ली दुनिया अपनों से
बदी सीख गया है बस, बद से बदनाम हो रहा है|
अक्लमंद ही बचेगा, सियासतों की साजिशों से
कौन की बुत शिकन है, और कौन दिल जोड़ रहा है|
दस्तगीर होना होगा इस मुश्किले वक्त हम सबको
सूरते हाल है कि जरूरतमंद हकारत झेल रह है|
डाॅ़ भूपेन्द्र हरदेनिया 'मौलिक'

मंगलवार, 7 अप्रैल 2020

न्यायकारिता

सृष्टि, जगत में सभी जीव परमात्मा के लिए संतानवत् हैं तो परमात्मा प्राकृतिक प्रकोप के द्वारा क्या दर्शाना चाहता है? कई जीव पृथ्वी पर पैर रखते ही मृत्यु को क्यों प्राप्त हो जाते हैं ऐसा क्यों ? 
मन में यह प्रश्न गूँजा कि इससे ईश्वर अपनी दयालुता दिखाना चाहता है या न्यायकारिता|
उत्तर मिला-
इसका अर्थ कहीं न्याय करना हो सकता है और कहीं यह भी हो सकता है कि भगवान ने पहले ही कह रखा था कि मैं सृष्टि बनाऊंगा और उसमें दुर्घटनाएं होंगी| आपका काम है दुर्घटना से बच के निकलना|
 इसको एक उदाहरण से समझा जा सकता है-एक इंजीनियर ने कार बनाकर उससे सम्बन्धित पूरा विवरण बुकलेट में छाप कर खरीदार को दे दिया, खरीदार को बता दिया कि पहले बुकलेट पढ़नी है और उसको समझ कर फिर कार का इस्तेमाल करना है बुकलेट में पहले से ही यह सूचना दे रखी है कि जब कार का इंजन स्टार्ट होगा तो इंजन में गर्मी बढ़ेगी और जब गर्मी बढ़ेगी तो उसके रेडिएटर में कूलेंट डाल कर रखना, उसका इंजन ठंडा रखना और मीटर पर देखते रहना कितना तापमान है पेट्रोल इंजन में अगर 100 डिग्री से ऊपर तापमान गया तो इंजन में आग लगेगी|
यदि कार चलाने वाला व्यक्ति बुकलेट के नियमों की अनदेखी करे, और कार में आवश्यकता पड़ने पर कूलेंट नहीं डाले,  रेडिएटर को चेक नहीं करें, मीटर देखे नहीं कि तापमान कितना बढ़ रहा है इस अवस्था में अगर कार में आग लगती है तो इसमें किसका दोष है| यह ड्राइवर और कस्टमर का दोष है| कार बनाने वाले इंजीनियर का दोष तो नहीं है|
‌इसी प्रकार से भगवान ने जब यह सृष्टि बनाई तो उसने कहा इस सृष्टि के अंदर भूकंप, तूफान, आंधी, सुनामी, टोरनैडो,  जैसी कई प्राकृतिक विपदा आने की संभावना है आपका काम है सावधानी से चलते रहना, पता लगाना हमारा काम है कि कहां तूफान आ सकता है, कहां भूकंप आने वाला है कहां बाढ़ की स्थिति बन सकती है, फिर उस से बचकर रहना| अगर हम ध्यान ना दें तो किसकी गलती हमारी या ईश्वर की| हमारी गलती, इसलिए ईश्वर पर दोष नहीं आता हमारा काम है दुर्घटनाओं से बचना जब हम सड़क पर चलते हैं तो मोटर गाड़ी से बच कर चलते हैं ऐसे ही संसार में रहते हैं तो प्राकृतिक दुर्घटनाओं से बचकर चलना भी हमारा ही काम है| आज सम्पूर्ण विश्व कोरोना विषाणु से उत्पन्न  महामारी से फैली त्रासदी को झेल रहा है, इस वक्त भी हम नियमों का पालन नहीं करेंगे, सरकारी मिन्नतों के बावजूद भी हम घर से बाहर निकलेंगे तो हम भी उस विषाणु की जद में आयेंगे और फिर क्या हश्र होगा उससे आप सब भली भाँति वाकिफ हैं| फिर आप भगवान को दोष देंगे | सभी भारतवासियों से अनुरोध है कि घर पर रहें, विभिन्न आयोजनों से दूर रहें, आपकी हरकतों के परिणाम स्वरूप हजारों बेगुनाह इस विषाणु की जद में आयेंगे| कृपा कर घरों में रहें सुरक्षित रहकर दूसरों पर उपकार करें|
आपका
डाॅ. भूपेन्द्र हरदेनिया