शुक्रवार, 17 जनवरी 2020

ख्वाहिशें और खयाल

ख्वाहिशें और खयाल

बेटियांँ अक्सर 
खूबसूरत ख्वाहिशों के साथ
पला, बढा़ करती हैं,

पर गुजा़र देती हैं 
पूरी ज़िंदगी
अपनों का खयाल रखने में ,

अपना
हर लम्हा
पुष्पार्पित करती हैं
परिवार के देवालय में,

खयाल रखती हैं वह
हर रूप में हर किसी का
हर जगह अपनी प्रस्थिति
भूमिका के साथ,

हर संबंध को 
एक कुशल कलाकार की कलाकारी 
कारीगर की कारीगरी की तरह 
करते हुए निर्वहन
समाये रहती हैं एक अलग 
वृहद संसार को
अपने आप में
अन्तर्मन में
गढ़ती रहती है एक मूर्ति
नित खंडित कर
स्वयं को,

सम्बन्धों में विस्तार पाती बेटियाँ
जो संकुचित ही रहती हैं 
स्वयं में हमेशा,
बहुत बडे़ दायरे को 
समेटते समेटते
खुद की सिकुड़न के साथ
अधूरी रह जाती हैं
तो सिर्फ 
और सिर्फ 
उनकी ख्वाहिशें
और वह,

 ख़्वाहिशें 
सिर्फ़ खयालों में|

डाॅ. भूपेन्द्र हरदेनिया

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