सोमवार, 13 जुलाई 2020

सत्य हाशिए पर रहता है

हर व्यक्ति समझदार होता है
कब तक ?

जब तक
उसमें झूठ सहन करने की
छल को झेलने की 
कपट को पी जाने की
दुराव-छुपाव के साथ
की गई चालाकियों को 
समझते हुए भी
नासमझ रहने की 
सारे भावों-कुभावों
को हृदय की गुहा में
समाये रखने की
चाटुकारिता की
चारणवृत्ति की
विरुदावली गायन की
दलगत भावना को
बनाये रख
केवल दृष्टा बने रहने की
रहती है समझदारी ,

जब सारे भाव 
छलकते हैं
कुम्भोच्छलनवत्
अतिरेक होने से,

कहने लगता है
सत्य वह
यथार्थ के साथ
जिसे करता था
नज़रअंदाज कभी,

लोगों को 
लगने लगते हैं
विद्रोही स्वर

माना जाने लगता है
अब नहीं रहा
समझदार वह
कई तथाकथितों की 
नज़रों में,

सबका होते हुए भी
नहीं रहता किसी का,
उनका भी जिनका कभी था,

आखिर
हाशिए पर 
रख दिया जाता है वह
हर जगह 
सत्य के साथ|

डाॅ. भूपेन्द्र हरदेनिया

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें