उन्होंने दिए धरने
कुछ सत्ताधारी आये
वे वादा करके चले गए
और उन्होंने धरना खत्म किया…....
वे भूल गए।
उन्होंने फिर धरने दिए
वे फिर आए,
अब विपक्ष में थे वे,
सरकार में आने पर
वादा पूरा करने का आश्वासन
दिया गया
फिर से
कहा गया अबकी पक्का।
सत्ता में आते ही
वे फिर भूल गए, प्रवृत्तिगत
अबकी ऐसा भूले
कि पहचानने से ही कर रहे
इंकार,
सत्ता, विपक्ष और फिर सत्ता में आने के अंतराल में
कई धरनाकार मारे गए,
कइयों के बच्चे हुए अनाथ
कई हुईं विधवाएं
गरीबी,
अभाव,
कुछ बीमारी का इलाज
न करा पाने के कारण
पर वादाकारों के कांनों
रेंगी नहीं जूं तक
हमेशा सरकारें, नेता
या वास्तव में वे अभिनेता
धरनाकारों के अरमानों से खेलते रहे हैं,
वे सपने बेचते रहे हैं।
इस प्रकार
अतिथि विद्वानों
जो धरनाकार थे कभी
उनकी लाशों पर
करते रहे हैं वे महाभोज श्वानों की तरह
© डॉ. भूपेन्द्र हरदेनिया
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