एतरेय ब्राह्मण
कलि: शयानो भवति संजिहानस्तु द्वापर:
उत्तीष्ठमस्त्रेताभवति कृतम समपदयते चरमश्चरेवेति|
सोने वाला पुरुष कलियुग में रहता है , अंगड़ाई लेने वाला द्वापर मे पहुँच जाता है | उठकर खड़ा हुआ पुरुष त्रेता मे आ जाता है | आशा ओर उत्साह से भरा सत्य के मार्ग पर चलाने वाले के सामने सतयुग आ जाता है ,इसलिए चलते रहो |
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