डॉ. भूपेन्द्र हरदेनिया एक ऐसे युवा रचनाकार हैं जो एक साथ कई विधाओं में शिद्दत के साथ सक्रिय हैं। अकादमिक सृजन से लेकर समकालीन विमर्शों तक उनकी व्यापक पैठ है और वे इन पर लगातार काम कर रहे हैं। हिन्दी साहित्य के अनेक कवियों पर उन्होंने आलोचनात्मक लेखन भी किया है और अब उनका पहला कविता संकलन ‘सत्य हाशिये पर रहता है‘ हमारे सामने है। एक युवा आलोचक, समीक्षक और विभिन्न कला माध्यमों पर सतत् लिखने वाले इस रचनाकार की कविताओं से रुबरू होना एक दिलचस्प अनुभव रहेगा।
इस संकलन की कविताएँ पढ़ते हुए जो एक बात चौंकाती है वह है रचनाओं का वैविध्यपूर्ण संसार। इस संकलन में घर परिवार के आत्मीय रिश्तों के साथ-साथ प्रकृति, परिवेश, समकालीन राजनीतिक परिदृश्य आदि पर अनेक महत्त्वपूर्ण रचनाएं मौजूद हैं।
यह अकारण नहीं है कि इस किताब की अनेक कविताओं में बार बार ‘हाशिया‘ शब्द आता है। भूपेन्द्र का कवि मन बार बार हाशिये पर फेंक दिए गए सत्य, विचार और जीवन मूल्यों की पड़ताल करते हुए दिखाई देता है। उनका कवि मन एक तरफ जहां तीसरी बेटी के जन्म के बाद एक स्त्री के भीतर जन्मे सवालों का ज़िक्र करता है, तो दूसरी तरफ अपनी अन्य कविताओं में इसी स्त्री के साहस, धैर्य और जिजीविषा को भी सेलिब्रेट करते हुए भी वह देखे जा सकते हैं।
भूपेन्द्र हरदेनिया अकादमिक दुनिया के नागरिक हैं, हिन्दी साहित्य और भाषा के पठन-पाठन और शोध से जुड़े हैं, लेकिन उनकी काव्य भाषा बहुत प्रांजल है, बौद्धिक आतंक से एकदम मुक्त एक आत्मीय भाषा जो अपने पाठक से सीधे संवाद करती है। अपने समय की तमाम जटिलताओं से जूझती, संघर्ष करती ये कविताएँ सम्प्रेषणीयता के स्तर पर सफल हैं । अधिकांश कविताएँ अभिधा में बात कहते हुए भी ख़ुद को सपाट होने से बचाए रखती हैं।
समकालीन कविता के संसार में इन कविताओं की आमद जरा देर से हुई है पर इस देरी की वजह सम्भवतः कवि की तैयारी रही होगी। इस संकलन में-पतंगबाजी, माँ, पुनर्जन्म, वास्तु-दोष जैसी प्रभावी और पठनीय कविताएँ तथा लॉक डाउन को केन्द्र में रखकर रची गईं कुछ मार्मिक कविताएँ भी शामिल हैं जो अपने पाठकों की स्मृति में अपनी जगह बनाने में सफल होंगी। भूपेन्द्र की कविताओं का उत्स या प्रस्थान बिंदु संवेदना है जो आगे चलकर विचार के साथ जुगलबंदी करता है ।
उम्मीद है समकालीन कविता के संसार में सम्भावनाओं से लबरेज़ इस नई आवाज़ का स्वागत होगा। कवि को शुभकामनाएं।
● मणि मोहन
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