मैं मजदूर हूँ
आज कंटक हूँ शासन के लिये
शोषकों के लिये अब मुसीबत, सिरदर्द के सिवाय कुछ नहीं|
चिंतकों के लिये विमर्श, उलाहना का मौका
आम जनता के लिये, एक दुख की खबर|
मैं मजदूर हूँ
मेरा सम्बन्ध रहा है सिर्फ़ वेदना से ही
मिलती रही वह सदियों से
किसी भी रूप में
चाहे वह दर्द हो
या दर्दनाक मौत के रूप में|
मैं मजदूर हूँ
बदनसीबी पीछा नहीं छोड़ती मेरा,
भूख-प्यास के बहाने अब कफन बनकर
मंडराकर
आ रही है कहीं भी
चाहे वह पटरी
जिसके सहारे निकला था गाँव,
या उस पर दौड़ती शासन की वह ट्रेन
जिसमें बैठकर
बस पहुँचने ही वाला था
अपने घर,
मैं मजदूर हूँ
अपने ठिकाने पर पहुँचने से
पहले ही हत्या कर दी गई मेरी
फिर किसी साज़िश के तहत
मैं मारा गया हूँ|
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