प्रेमन धागा सूत का, खींचत रह दिन रैन
दोउ और से बच सके, एकै टूटे बैन
प्रेम धागा दोउन का, गुण व दोष सब संग
जो दोषन देखन फिरै, प्रेम नहि बाके ढिंग|
राग द्वेष जो ले फिरे, प्रेम न मिल्यो बाय|
छल कपट ते न मिल सके, प्रेम न हाट बिकाय||
तन काँचा मन न साँचा, मन को रूप कुरूप,
कपट कुचाल की मति से, प्रेम न मिलिये भूप|
मैं और तू मिलके ही, होवत प्रेम अगाध
मेरे तेरे ते करत, बिगरत सबरो राग|
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