वे स्थान
जहाँ पूजते,
करते रहे इबादत उसकी
कई अर्से से,
भय मुक्त होकर|
उस भरोसे से
कि वह रहता है वहीं
मिलेगा भी उसी जगह,
माँगते रहे
कुछ न कुछ|
भयातुर हो
टपक गया भ्रम,
पतझर के पत्तों के माफ़िक|
आस्था-विश्वास के साथ
अब वो घर में ही है
हमारे पास,
और हम जीने लगे
यथार्थ में|
-डाॅ. भूपेन्द्र हरदेनिया
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