रविवार, 14 जून 2020

इबादत खाना

वे स्थान
जहाँ पूजते,
करते रहे इबादत उसकी
कई अर्से से, 
भय मुक्त होकर|

उस भरोसे से
कि वह रहता है वहीं
मिलेगा भी उसी जगह,
माँगते रहे
कुछ न कुछ|

भयातुर हो
टपक गया भ्रम,
पतझर के पत्तों के माफ़िक|

आस्था-विश्वास के साथ
अब वो घर में ही है
हमारे पास,
और हम जीने लगे
यथार्थ में|

-डाॅ. भूपेन्द्र हरदेनिया

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