मीडिया विमर्श‘ में ‘स्त्री विमर्श‘
-डॉ0 भूपेन्द्र हरदेनिया
वर्तमान परिप्रेक्ष्य में स्त्री की शक्ति को आंकने और उस पर चिंतन करने का जो चलन है, उसे साहित्य में एक विमर्श का रूप दे दिया गया है, और उस विमर्श को ही स्त्री विमर्श, नारी विमर्श, स्त्री चेतना, समाजशास्त्र में महिला सशक्तिकरण के नाम से जाना जाता है। स्त्री विमर्श, दलित विमर्श की तरह ही एक ज्वलंत मुद्दा है, और होना भी चाहिए, क्यों कि स्त्री की स्थिति प्राचीनकाल से लेकर अर्वाचीन काल तक चिंतनीय ही रही है, जिसके कारण आज स्वयं स्त्री और उसके साथ प्रत्येक व्यक्ति स्त्री की अस्मिता, उसकी स्वतंत्रता और उसकी सशक्तता पर सोचने को मजबूर हो गया है। आधुनातन संदर्भ में स्त्री विमर्श के मायने बदले हैं, आज की नारी वह नारी नहीं है, जो अबला के रूप में प्राचीनकाल में पुरूष वर्ग के अधीनस्थ ही रहती है, आज स्त्री का रूप सुधरा है, आज वह अपने सशक्तिकरण के दौर से गुजर रही है। प्रत्येक विषय, प्रत्येक विधा और प्रत्येक क्षेत्र के लिए स्त्री ने अपने आप को सुयोग्य बनाया है। जैसे साहित्य, चिकित्सा, विज्ञान, तकनीकि, प्रबंधन, विधि इत्यादि। इसी तरह का एक और जाना-माना क्षेत्र है और वह है, पत्रकारिता या मीडिया का। इस क्षेत्र में भी नारी ने अपनी एक स्वतंत्र पहचान बनाई है, लेकिन इस बात का मुझे स्पष्ट पता तब चला, जब प्रो0 संजय द्विवेदी के संपादकत्व में प्रकाशित अंतराष्ट्रीय पत्रिका ‘मीडिया विमर्श‘ का स्त्री शक्ति विशेषांक पढ़ा। वाकई आवरण से लेकर इस पत्रिका की सम्पूर्ण विषय वस्तु अविभूत कर देने वाली है। जब मैंने इस पत्रिका के पृष्ठ को पलटना शुरू किया तो सबसे पहले मैं संजय जी की संपादकीय से रू-ब-रू हुआ, इसमें उन्होंने भाषा की राजनीति पर जो सवाल उठाए हैं, वे अत्यंत ज्वलंत और गंभीर रूप से चिंतनीय हैं। इस पत्रिका में अनेक लेख एवं जीवन वृत्त उन महिलाओं को लेकर संकलित हैं, जिन्होंने मीडिया, पत्रकारिता, साहित्य के क्षेत्र में अपनी एक अलग और श्रेष्ठ पहचान बनाई। चाहे वह इस्मत चुगताई हों या शोभना भरतिया, उषा राय हों या प्रो0 मृणालिनी या ओल्गा टैलिस या अन्यानेक मीडिया कर्मी लगभग सभी महत्त्वूर्ण हस्तियों पर आवरण कथा, संस्मरण और साक्षात्कार इस पत्रिका में प्रकाशित हैं।
‘इस्मत चुगताई‘ पर केन्द्रित सुधीर विद्यार्थी द्वारा लिखित जीवन वृत्त ‘ऑंचल को बनाया परचम‘ इस्मत आपा के सम्पूर्ण जीवन संघर्ष, उनके चिंतन और उनके साहित्य की विषय वस्तु की स्पष्ट भूमिका तो प्रस्तुत करता ही है, साथ ही एक मुस्लिम नारी की स्थिति को जो बंदिशों की बेड़ियों को तोड़कर किस प्रकार समाज में, साहित्य में अपने आप को स्थापित करती है उसका बड़ा ही सुन्दर दृश्य इस वृत्त के माध्यम से चित्रित हुआ है। एक अन्य वृत्त के माध्यम से अंकुर विजयवर्गीय ने वर्तमान में हिन्दुस्तान टाइम्स मीडिया लिमिटेड की चेयरपर्सन और एडिटोरियल डायरेक्टर के पद पर कार्यरत शोभना भरतिया का परिचय और कार्यशैली को संक्षिप्त, किन्तु बड़े ही सुनियोजित ढंग से व्यक्त किया है। बीबीसी मीडिया एक्शन के साथ कार्यरत उषा राय के पत्रकारिता जीवन और उनकी उपलब्धियों को स्पष्ट किया है। तेलगू मीडिया का जाना-पहचाना चेहरा, पांडिच्चेरी विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग में सहायक आचार्य के पद पर कार्यरत सी0 मृणालिनी पर सी. जयशंकर बाबू के आलेख में तेलगू मीडिया को उनके प्रदेय, इलेक्ट्रानिक मीडिया मंे उनकी महती भूमिका, उपलिब्धयों के साथ-साथ पत्रकारिता के क्षेत्र में अनकी बहुज्ञता को स्पष्ट परिलक्षित किया गया है। पत्रकारिता के प्रति समर्पित ओल्गा टैलिस के संघर्षी व्यक्तित्व पर लिखा तवलीन सिंह का संस्मरण ओल्गा के पत्रकारिता जीवन के साथ उनके व्यक्तित्व को भी प्रतिबिम्बित करता है। इसी प्रकार अन्य साक्षात्कार जो सुनीता एरन, जयंती रंगनाथन एवं मीडिया विमर्श मंे प्रकाशित स्त्री विमर्श से जुड़ी अन्य आवरण कथाएॅं मीडिया में महिलाओं के सशक्तिकरण को बिल्कुल सही और वेबाकी ढंग से प्रस्तुत करती हैं। मीडिया हो या पत्रकारिता के विभिन्न रूप, उनसे जुड़े हर आयाम, हर महत्त्वपूर्ण व्यक्तित्व और उस व्यक्तित्व से जुड़े हर पहलू की एक सारगर्भित रूपरेखा इस पत्रिका ने संजोयी है। कहा जा सकता है मीडिया विमर्श में मीडिया विमर्श के बहाने मीडिया में स्त्री विमर्श को आम पाठक के लिए सहज कराया है, तथा इस बात का भान कराया है, कि जिस प्रकार अन्यानेक क्षेत्रों में महिलाओं ने अपना परचम लहराया है, उसी प्रकार मीडिया और भारतीय पत्रकारिता की समृद्धि और उसकी उत्तरोत्तर विकास यात्रा में महिला कहीं भी पीछे नहीं हैं, उनके इस अवदान को मीडिया विमर्श ने आमजन के लिए प्रदर्शित किया है। इसके लिए प्रो0 द्विवेदी का यह कार्य वाकई में सराहनीय है। उनकी अंतर्राष्ट्रीय पत्रिका ‘मीडिया विमर्श‘ दिनों दिन प्रगति के पथ पर अग्रसर है, इस पत्रिका में प्रकाशित शोध-परक आलेख, संस्मरण, साक्षात्मक एवं अन्य गद्य विधाएॅं अपने हर अंक के साथ एक नये विमर्श को प्रस्तुत करती है, और उस विमर्श में सहृदय को एक नये चिंतन और बौद्धिक विमर्श के लिए अग्रसर तो करती ही है, साथ ही सहृदय का सहज रूप से साधारणीकरण भी करती है, ताकि असाधारण जनमानस भी सहज हो जाए। इस पत्रिका के संदेश समाज के अन्तिम व्यक्ति तक पहुॅंचाने की पहल बहुत की अच्छी है। मीडिया समाज का दर्पण है, और आशा है कि ‘मीडिया विमर्श‘ भी इसी दर्पण की तरह कार्य करेगी, अपनी नित नवीन संकल्पनाओं को समाज के समाज के सामने प्रस्तुत करेगी, और नये आयामों को नवीन विमर्श के साथ मीडियात्मक साहित्य में श्रीवृद्धि करेगी, एवं अपनी साधनात्मक भूमिका का निर्वहन करेगी।
-डॉ0 भूपेन्द्र हरदेनिया
वर्तमान परिप्रेक्ष्य में स्त्री की शक्ति को आंकने और उस पर चिंतन करने का जो चलन है, उसे साहित्य में एक विमर्श का रूप दे दिया गया है, और उस विमर्श को ही स्त्री विमर्श, नारी विमर्श, स्त्री चेतना, समाजशास्त्र में महिला सशक्तिकरण के नाम से जाना जाता है। स्त्री विमर्श, दलित विमर्श की तरह ही एक ज्वलंत मुद्दा है, और होना भी चाहिए, क्यों कि स्त्री की स्थिति प्राचीनकाल से लेकर अर्वाचीन काल तक चिंतनीय ही रही है, जिसके कारण आज स्वयं स्त्री और उसके साथ प्रत्येक व्यक्ति स्त्री की अस्मिता, उसकी स्वतंत्रता और उसकी सशक्तता पर सोचने को मजबूर हो गया है। आधुनातन संदर्भ में स्त्री विमर्श के मायने बदले हैं, आज की नारी वह नारी नहीं है, जो अबला के रूप में प्राचीनकाल में पुरूष वर्ग के अधीनस्थ ही रहती है, आज स्त्री का रूप सुधरा है, आज वह अपने सशक्तिकरण के दौर से गुजर रही है। प्रत्येक विषय, प्रत्येक विधा और प्रत्येक क्षेत्र के लिए स्त्री ने अपने आप को सुयोग्य बनाया है। जैसे साहित्य, चिकित्सा, विज्ञान, तकनीकि, प्रबंधन, विधि इत्यादि। इसी तरह का एक और जाना-माना क्षेत्र है और वह है, पत्रकारिता या मीडिया का। इस क्षेत्र में भी नारी ने अपनी एक स्वतंत्र पहचान बनाई है, लेकिन इस बात का मुझे स्पष्ट पता तब चला, जब प्रो0 संजय द्विवेदी के संपादकत्व में प्रकाशित अंतराष्ट्रीय पत्रिका ‘मीडिया विमर्श‘ का स्त्री शक्ति विशेषांक पढ़ा। वाकई आवरण से लेकर इस पत्रिका की सम्पूर्ण विषय वस्तु अविभूत कर देने वाली है। जब मैंने इस पत्रिका के पृष्ठ को पलटना शुरू किया तो सबसे पहले मैं संजय जी की संपादकीय से रू-ब-रू हुआ, इसमें उन्होंने भाषा की राजनीति पर जो सवाल उठाए हैं, वे अत्यंत ज्वलंत और गंभीर रूप से चिंतनीय हैं। इस पत्रिका में अनेक लेख एवं जीवन वृत्त उन महिलाओं को लेकर संकलित हैं, जिन्होंने मीडिया, पत्रकारिता, साहित्य के क्षेत्र में अपनी एक अलग और श्रेष्ठ पहचान बनाई। चाहे वह इस्मत चुगताई हों या शोभना भरतिया, उषा राय हों या प्रो0 मृणालिनी या ओल्गा टैलिस या अन्यानेक मीडिया कर्मी लगभग सभी महत्त्वूर्ण हस्तियों पर आवरण कथा, संस्मरण और साक्षात्कार इस पत्रिका में प्रकाशित हैं।
‘इस्मत चुगताई‘ पर केन्द्रित सुधीर विद्यार्थी द्वारा लिखित जीवन वृत्त ‘ऑंचल को बनाया परचम‘ इस्मत आपा के सम्पूर्ण जीवन संघर्ष, उनके चिंतन और उनके साहित्य की विषय वस्तु की स्पष्ट भूमिका तो प्रस्तुत करता ही है, साथ ही एक मुस्लिम नारी की स्थिति को जो बंदिशों की बेड़ियों को तोड़कर किस प्रकार समाज में, साहित्य में अपने आप को स्थापित करती है उसका बड़ा ही सुन्दर दृश्य इस वृत्त के माध्यम से चित्रित हुआ है। एक अन्य वृत्त के माध्यम से अंकुर विजयवर्गीय ने वर्तमान में हिन्दुस्तान टाइम्स मीडिया लिमिटेड की चेयरपर्सन और एडिटोरियल डायरेक्टर के पद पर कार्यरत शोभना भरतिया का परिचय और कार्यशैली को संक्षिप्त, किन्तु बड़े ही सुनियोजित ढंग से व्यक्त किया है। बीबीसी मीडिया एक्शन के साथ कार्यरत उषा राय के पत्रकारिता जीवन और उनकी उपलब्धियों को स्पष्ट किया है। तेलगू मीडिया का जाना-पहचाना चेहरा, पांडिच्चेरी विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग में सहायक आचार्य के पद पर कार्यरत सी0 मृणालिनी पर सी. जयशंकर बाबू के आलेख में तेलगू मीडिया को उनके प्रदेय, इलेक्ट्रानिक मीडिया मंे उनकी महती भूमिका, उपलिब्धयों के साथ-साथ पत्रकारिता के क्षेत्र में अनकी बहुज्ञता को स्पष्ट परिलक्षित किया गया है। पत्रकारिता के प्रति समर्पित ओल्गा टैलिस के संघर्षी व्यक्तित्व पर लिखा तवलीन सिंह का संस्मरण ओल्गा के पत्रकारिता जीवन के साथ उनके व्यक्तित्व को भी प्रतिबिम्बित करता है। इसी प्रकार अन्य साक्षात्कार जो सुनीता एरन, जयंती रंगनाथन एवं मीडिया विमर्श मंे प्रकाशित स्त्री विमर्श से जुड़ी अन्य आवरण कथाएॅं मीडिया में महिलाओं के सशक्तिकरण को बिल्कुल सही और वेबाकी ढंग से प्रस्तुत करती हैं। मीडिया हो या पत्रकारिता के विभिन्न रूप, उनसे जुड़े हर आयाम, हर महत्त्वपूर्ण व्यक्तित्व और उस व्यक्तित्व से जुड़े हर पहलू की एक सारगर्भित रूपरेखा इस पत्रिका ने संजोयी है। कहा जा सकता है मीडिया विमर्श में मीडिया विमर्श के बहाने मीडिया में स्त्री विमर्श को आम पाठक के लिए सहज कराया है, तथा इस बात का भान कराया है, कि जिस प्रकार अन्यानेक क्षेत्रों में महिलाओं ने अपना परचम लहराया है, उसी प्रकार मीडिया और भारतीय पत्रकारिता की समृद्धि और उसकी उत्तरोत्तर विकास यात्रा में महिला कहीं भी पीछे नहीं हैं, उनके इस अवदान को मीडिया विमर्श ने आमजन के लिए प्रदर्शित किया है। इसके लिए प्रो0 द्विवेदी का यह कार्य वाकई में सराहनीय है। उनकी अंतर्राष्ट्रीय पत्रिका ‘मीडिया विमर्श‘ दिनों दिन प्रगति के पथ पर अग्रसर है, इस पत्रिका में प्रकाशित शोध-परक आलेख, संस्मरण, साक्षात्मक एवं अन्य गद्य विधाएॅं अपने हर अंक के साथ एक नये विमर्श को प्रस्तुत करती है, और उस विमर्श में सहृदय को एक नये चिंतन और बौद्धिक विमर्श के लिए अग्रसर तो करती ही है, साथ ही सहृदय का सहज रूप से साधारणीकरण भी करती है, ताकि असाधारण जनमानस भी सहज हो जाए। इस पत्रिका के संदेश समाज के अन्तिम व्यक्ति तक पहुॅंचाने की पहल बहुत की अच्छी है। मीडिया समाज का दर्पण है, और आशा है कि ‘मीडिया विमर्श‘ भी इसी दर्पण की तरह कार्य करेगी, अपनी नित नवीन संकल्पनाओं को समाज के समाज के सामने प्रस्तुत करेगी, और नये आयामों को नवीन विमर्श के साथ मीडियात्मक साहित्य में श्रीवृद्धि करेगी, एवं अपनी साधनात्मक भूमिका का निर्वहन करेगी।
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