शुक्रवार, 6 मई 2016

साक्षात्कार - नकली जीवन जीकर असली कलाकार नहीं हुआ जा सकता . राग तेलंग

नकली जीवन जीकर असली कलाकार नहीं हुआ जा सकता  . राग तेलंग

समकालीन हिंदी कविता के प्रमुख कवि राग तेलंग अपनी विलक्षण शैली और शिल्प की कविताओं के लिए जाने जाते हैं उनकी कविताओं के अछूते विषय और ह्रदय में उतर जाने वाली भाषा से एक ऐसे संगीत.रस की निष्पत्ति होती है कि लगता ही नहीं यह शब्द की कविता है, ऐसी कविता का कवि जो अपने पाठक के भीतर शब्द का संगीत यूं प्रवाहित कराये कि उसके जादू से मुश्किल हो जाए मुक्त हो जाए| कवि  अपनी काव्य प्रक्रिया के बारे में क्या सोचता है किन चीजों.परिस्थितियों से गुज़रकर उसकी रचना प्रक्रिया मुकम्मल होती है उसकी कविता बनती ऐसे ही कुछ सवालों को लेकर मैंने उनसे बातचीत की है आइये जाने उनकी रचना प्रक्रिया के बारे मैं  -
भू० ह० आपके विचार से कला का संबंध कलाकार के जीवन से कितना और किस प्रकार का है  क्या  वही कला     महत्ता प्राप्त कर सकती है, जिसका संबंध कलाकार की जीवन यात्रा से होता है |
रा० तै० बहुत गहरा, अंतर्मन से, क्योंकि कला अंतर्मन से ही उपजती है । जीवन से ही कला का उत्स होता है । कला जीवन की जीवंतता का प्रतिबिंब है । आपके इस प्रश्न के दूसरे भाग से मेरी सहमति है । कला और कलाकार का जीवन दोनों एक दूसरे के समानार्थी और पर्याय होना बहुत जरूरी है । जैसा हम सोचते.कहते हैं, वैसा ही हम होते हैं। नकली जीवन जीकर असली कलाकार नहीं हुआ जा सकता । हर  काल के सारे बड़े कलाकार कला को वास्तविक रूप में पहले जीते थे फिर वो कला को अपने.अपने केनवास पर उतारते थे ।
भू० ह० क्या रचनाकार हर समय रचनात्मक रहता है या एक विशेष कलात्मक अनुभव के क्षण के  उपरान्त वह सामान्य व्यक्ति जैसा हो जाता है| आपका इस संबंध में क्या अनुभव है

रा० तै० गालिब कहते हैं कि बदलकर भेस हम फकीरों का गालिब तमाशा .ए.अहले करम देखते हैं ।  रचनाकार हर वक्त कलात्मक अनुभवों से सराबोर रहता है । मगर बाहरी दुनिया के लोगों के लिए उसे सामान्य व्यक्ति की तरह दिखाई देना होता हैए इसीलिए वह सामान्य व्यक्ति की तरह रहता है । सामान्य दिखने की कोशिश में अक्सर वह असफल भी होता है । कलाकार यानी एक मौलिक कलाकार, समय के हर क्षण में कलाकार होता है । उसकी कला का प्रकटीकरण हर क्षण में हो जरूरी नहीं, परंतु चिंतन की, कल्पना की, अंतर्मन की प्रक्रिया मथनी की तरह कलाकार के भीतर चलती रहती है, लगातार बिना रूके, चेतन. अवचेतन स्थिति में ।
 भू० ह० काव्य रचना प्रक्रिया की परिभाषा क्या होनी चाहिए |रा० तै० काव्य रचना प्रक्रिया अपरिभाषेय है । रचना प्रक्रिया  के बारे में कुछ भी कहना हर लेखक के लिए मुश्किल है इसीलिए रचना प्रक्रिया अपरिभाषेय है । चूंकि रचना.प्रक्रिया अनुभव के तारों पर चलती है और कविता फिनिश लाइन पर खत्म होती हैए तब तक दौड़ते ही जाना है । उत्स का क्षणए स्पार्क की परिस्थितियां कब मौजूद होती हैं यह ठीक.ठीक रचनाकार को भी पता नहीं होता । आभास के क्षणों को अगर वह रूपांतरित कर ले तो ठीक अन्यथा रचनात्मकता लुप्त होने में देर भी नहीं लगती । विज्ञान की भाषा में कहें तो वह प्रेरण यानी इंडक्शन की प्रक्रिया से मिलती. जुलती प्रक्रिया है । लेकिन इतना तो तय है कि रचनात्मकता की परिस्थितियां रचनाकार के आसपास हमेशा बनी रहती हैंए वह रचना के लिए तैयार है तब भी और नहीं है तब भी । रचनाकार को उस परिस्थिति के साथ तादात्म्य बैठाना होता है, तब ही रचना संभव होती है । रचनात्मकता इसी जटिल  संयोजन से उपजती है और इसीलिए यह जटिलता अपरिभाषेय की श्रेणी में कही जा सकती है ।
 भू० ह० काव्य रचना में प्रेरणा का क्या योगदान है |
रा० तै० स्मृतियों का यदि कुल मिलाकर एक चेहरा बनाया जाए तो वह प्रेरणा का होगा, ऐसा मुझे लगता है । प्रेरणा उत्प्रेरक के काम भर की है बस । आगे का काम कलाकार के जीवनानुभव, कौशल और उसका अंदाज करता है । आपको यह जानना दिलचस्प लगेगा कि अक्सर कलाकार अपनी प्रेरणा का चयन खुद करते हैं । अपने आसपास के परिवेश से वह भी शायद लगातार बदलते हुए । एक लंबी यात्रा में एक ही प्रेरणा काम करे जरूरी नहीं । यह हर निश्चित दूरी पर ईंधन बार.बार भरवाने जैसा लगता है ।

भू० ह० काव्य सृजन में कल्पना का कितना योगदान होता है |
रा० तै० सारी कल्पनाएं यथार्थ से उपजी हैं । कोई भी कल्पना निराधार नहीं । काल्पनिकता का सृजन में योगदान एक निश्चित अनुपात में ही है, अधिकतर श्रेय वास्तविकता का अनुभव, जीवन का है । लेकिन कल्पना के बगैर यथार्थ का मजा भी नहीं है । यथार्थ सबसे पहले कल्पना में ही आकर बैठता है, वहीं से  उसकी यात्रा शुरू होती है । फोटो खींचने और पेंटिंग बनाने में जो फर्क है उस प्रक्रिया से रचना में कल्पना की जरूरत पर सोचा जा सकता है ।
भू० ह० सृजन के क्षणों में आपके मन की क्या गति होती है | आप कैसी मनस्थिति में कविता लिखते हैं |
रा० तै० जब सर्जना की उर्जा तरंगों से मैं स्पंदित होता हूँ, लिखता हॅूं । कविता दिल का मामला ज्यादा है, दिमाग का कम । लेकिन खुद को एक सचेतन स्थिति में रखते हुए, फिर लिखता हूँ । लिखते वक्त आपको फोकस्ड होना पड़ता है, आपके कंटेंट और काव्य दृष्टि के प्रति । लिखना मजाक नहीं है । लिखते हुए लिखे गए विषय. कथ्य की पीड़ा आपको  भी स्पंदित करती है, रूलाती है, तकलीफ देती है, अगर आंसू भी आ जाते हैं, कहा जाए तो अतिशयोक्ति नहीं ।

भू० ह० सृजन के समय में चित्त की एकाग्रता या समाधि को आप कितना आवश्यक मानते हैं |
रा० तै० बहुत ज्यादा । एक कविता को लगातार जितना समय चाहिए, देता हॅूं । टुकड़ों.टुकड़ों में नहीं लिखता । एकाग्रता सबसे जरूरी औजार है सृजन के लिए ।

भू० ह० काव्य रचना प्रक्रिया में प्रतीक, बिम्ब, मिथक और फैण्टेसी का कितना और क्या.क्या योगदान है |

रा० तै० प्रतीक, बिंब, मिथक जरूरी तत्व हैं फैंटेसी गैर.जरूरी । फैंटेसी की जरूरत जिस साहित्य में होती है, वह एक खास मनःस्थिति वाले पाठक की आवश्यकता के मद्देनजर लिखी जाती है । दरअसल हमारे आसपास ही इतना कुछ जीवंत घट रहा है कि जीवन में फैंटेसी की जरूरत उतनी नहीं है । अक्सर फैंटेसी पलायनवादियों का रास्ता बनती है इसे नहीं भूलना चाहिए ।

भू० ह० कविता लिखना क्या एक आवेगपूर्ण प्रक्रिया है |
रा० तै० बिल्कुल । एक स्थिति आती है कवि के जीवन में जब कविता का उपजना एक रिफ्लेक्स एक्शन  के तहत हो जाता है । एक आवेग से भरी क्रिया । आवेग को बनाए रखना रचना संपन्न करने के लिए बहुत जरूरी है । लेखन कोई मैनेजमेंट का काम नहीं है । बिना आवेग केए गुस्से के, प्रेम के या किसी भी ऐसे जज़्बे से जो रचना की जरूरी मांग हो, लिखा नहीं जा सकता ।

भू० ह० कविता के सृजन के दौरान आपकी भाषा किस प्रकार के रचनात्मक तनाव से गुजरती है |
रा० तै० भाषा को बहुत तनाव की स्थिति से गुजरना पड़ता है । भाषा की तनी हुई रस्सी पर मन की उद्विग्नता का गीलापन रचनात्मकता की आंच में सूखता है । आपकी बोली.भाषा हर पंक्ति में परीक्षा के दौर से गुजरती है। निर्भर करता है कि आप किस मिजाज़ के पाठकों से संबोधित हैं । आपके पाठकों की अपेक्षा होती ही है कि आप भाषा उसके मुताबिक न सिर्फ रचें बल्कि भाषा के रचनात्मक खेल भी दिखाएं । एक नई भाषा को जन्म देने के करीब की भाषा का खेल । साथ ही समाज में भाषा के नाम पर हो रहे खिलवाड़ के प्रति सचेत करते हुए आप एक ऐसी भाषा के करीब ले जाकर पाठक को खड़ा करें कि लगे वह जनभाषा की बात है ।

भू० ह०  काव्य रचना में कवि व्यक्तित्व का कितना महत्व होता है |
रा० तै० काव्य सृजन. प्रक्रिया में व्यक्तित्व का विशेष महत्व नहीं होता । व्यक्तित्व का क्या है ! लिखने के बाद रचना पाठक की संपत्ति हो जाती है । लेखक अगर लिखने के बाद ‘मैं‘ से मुक्त नहीं हुआ तो लिखना संतुष्टि.मुक्ति के द्वार पर ले जाए गए कहना बेमानी है ।



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